।। राजस्थानी लोकदेवता वीर कल्लाजी राठौर ।।
header ads

।। राजस्थानी लोकदेवता वीर कल्लाजी राठौर ।।

🙏🏼 ।। राजस्थानी लोकदेवता वीर कल्ला जी राठौर की शोर्य गाथा ।।
भारत खंड या भरत भूमि वास्तव में कई महान लोगो के इतिहास और बातों से भरा पड़ा है। इसके कण - कण में वीरता और बलिदान की बातें बसी हुई हैं।जिसे भारत के कवियों एवम इतिहासकारों ने टटोल कर कई बार हमारे सामने पेश किया हैं। 

बात करें अगर भरत खंड की पवित्र भूमि राजस्थान की तो यहां कई वीर, भक्त, शूरवीर, दानी, संत पुरुष, सतीयां, हुई हैं जिन्होंने भारत माता कि कोख को उजागर किया है।और सत्य सनातन धर्म को टिकाए रखा इस मां वसुंधरा पर। इस देश को युंही बलिदान और शूरवीरों का देश नहीं कहा जाता, इस एक शब्द को पाने के लिए हमारे वीरों ने ना जाने कितने ही बलिदान दिए है। 

इतिहास तो यहां तक साक्षी है कि कई वीरों के सर काटने के बाद भी धड़ धर्म के लिए लड़ते रहे है। जो आज भी अपने इस धरती पर पूजे जाते है और अपने धर्म को ना त्यागने की हमें सीख देते है।


इस जगत में भारत भूमि की कई जगहों पर नेकी, टेकी, भक्ति, दया, धर्मी, दानी, वीर, योद्धा, सन्यासी लोगो के इतिहास दबे पड़े है, पर उन सभी में शूरवीरों की भूमि राजस्थान कि बात सबसे निराली है। राजस्थान जो पूर्व काल का राजपूताना कहा जाता हैं यह हमेंशा से ही संत और सुरा ओ की भूमि रहा है।

इस पवित्र भूमि में संत श्री मीरा बाई, कलयुग अवतार श्री रामदेवजी महाराज, संत श्री कबीर महाराज, श्री गोगाजी महाराज, सती श्री पद्मिनी मां तथा मेवाड़ के राजा महाराणा प्रताप, पृथ्वीराज सिंह चौहान, जैसे कई महा पुरुष साधु संत हुए जिनको आप और हम बार बार नमन करें तो भी उनका ऋण हम नहीं चुका सकते। 

जब तक सूरज और चंद्रमा है तबतक ईन महान हस्तियों का नाम विसराया नहीं जा सकता। वो कहते हे ना की अपने खड़े किए हुए मकान कितने ही मजबूत कियुं ना हो, वो एक दिन ढेह जाएंगे और आप पैसा कमाकर कितना ही ऊंचा मुकाम हासिल कर ले पर दुनियां थोड़े समय बाद आपको भूल जायेगी पर यदि आपने धर्म करके या दान करके या फिर शूरवीर ता के दम पर अपना नाम बनाया है तो वो नाम उपर वाले की फाइल में दर्ज हो जाएगा और इस जगत का जबतक अस्तित्व है इस लोक में जबतक मनुष्य है तब तक आपका नाम लिया जाएगा।

आज हम राजस्थान की पवित्र भूमि के एक महान् शूरवीर की बात करने वाले हैं, जिसने राजस्थान की भूमि पर शूर्वीरता की मिसाल कायम की थी।राजस्थान की यह अति पावन और पवित्र भूमि कि एक कहानी श्री वीर कल्लाजी राठौर की हमने पसंद की है जिनको वहां के लोक देवता के रूप में पूजा जाता हैं। 

राजस्थान की यह अति पावन और पवित्र भूमि कि एक कहानी श्री कल्लाजी राठौर की हमने पसंद की है जिनको वहां के लोक देवता के रूप में पूजा जाता हैं।

🔷🔹🔸🔸🔸🔸🔸🔸🔹🔷

बलिदान दिन 24 फेब्रुआरी 

⚜️ कल्ला जी राठौर का जन्म मेड़ता राजस्थान के राजपरिवार में सन् 1601 को हुआ था, इनको पूरे राजस्थान में लोक देवता के रूप में पूजा जाता हैं।

⚜️ इनके पिताश्री आसासिंह जो मेड़ता के राव जयमलजी के सबसे छोटे भाई थे और भक्त मीराबाई इनकी बुआ थीं। कल्ला जी बचपन से ही शिक्षा, योग, औषध विज्ञान तथा शस्त्र चलाने में माहिर थे। जग प्रसिद्ध योगी गुरू श्री भैरवनाथ जी से योग शिक्षा पाई।

⚜️ मुगल आक्रांता अकबर ने जब मेड़ता पर हमला बोला तो राव जयमल के आगेवानी में आसासिंह तथा कल्ला जी ने अकबर का जमकर मुकाबला किया, पर आक्रांताओं की इतनी बड़ी सेना के सामने सफलता मिलती देख राव जयमल अपने परिवार सहित वहां से निकल कर चित्तौड़ गढ़ पहुँच गये। 

जहां राणा उदयसिंह ने उन्हें आदर सत्कार दे कर बदनौर की जागीर प्रदान की। कल्ला जी को रणढालपुर की जागीर दी गई और उन्हें गुजरात सीमा क्षेत्र का रक्षक नियुक्त किया।
⚜️ थोड़े समय बाद कल्ला जी का विवाह शिवगढ़ राव कृष्णदास की पुत्री कृष्णा से तय हुआ। विवाह की एक विधि द्वाराचार के समय उनकी सास ने उनकी आरती उतारी, तभी राणा उदयसिंह उन्हें सन्देश देते है कि आक्रांता अकबर ने चित्तौड़ पर हमल किया है, समाचार सुनते हि कल्लाजी तत्काल सेना लेकर वहाँ पहुँचें। कल्ला जी विवाह को बीच में छोड़ अपनी पत्नी से शीघ्र लौटने को वादा कर चित्तौड़ की और कूच कर गए।

⚜️ महाराणा प्रताप ने राव जयमल को अपना सेनापति नियुक्त किया था। आक्रांता अकबर की सेना ने जब चित्तौड़ को चारों ओर से घेरा, तब मेवाड़ी वीरो ने किले से हमला कर शत्रुओं के दल को बड़ी क्षति पहुंचाई फिर किले में लोट आए। कई दिनों कि लड़ाई के बाद जब उन वीरों में से कुछ गिने चुने वीर ही बाकी रह गए, तब सेनापति जयमल ने कहां, अब अन्तिम फैसले का समय आ गया है! उन्होंने कहां सभी सैनिक केसरिया बाना पहन लो अब अंतिम युद्ध होगा।

⚜️ इस आदेश का मतलब स्पष्ट था, उस की रात चित्तौड़ किले में मौजूद सभी क्षत्राणियों ने जौहर अग्नि को स्वीकारा और अगले दिन मेवाड़ के वीर किले के द्वारो को खोल दिया एवम् मुगलों की सेना पर भूखे शेरों की भाँति टूट पड़े। अति भयंकर युद्ध होने लगा।
⚜️ सेनापति राव जयमल के पाँव में गोली लगी। वह ठीक से खड़े नहीं हो पा रहे थे। तब कल्ला जी ने राव जयमल जी को दोनों हाथों में शमशेर दी और उन्हें अपने कंधे पर बैठा लिया। कल्ला जी ने खुद भी अपने दोनों हाथों में तलवारें ले लीं।

⚜️ चार तलवार करे चोधारा वार चारों तलवारें दुश्मनों पर बिजली की गति से चलने लगीं। मुगल सैनिकों की लाशों का अंबार धरती लग गया। यह देख अकबर को कल्ला जी और राव जयमल जी में उसे दो सिर और चार हाथ वाला कोई देवता का दर्शन हुआ। युद्ध दोनों वीर बूरी तरह से घायल हो गये। कल्ला जी ने राव जयमल जी को नीचे उतार उनकी सारवार करने लगे तभी उस वक्त एक आक्रांता शत्रु में से एक सैनिक ने पीछे से हमला कर उनका सिर धड से अलग कर दिया, पर यह तो कल्ला जी थे सिर कटने के बाद भी धड़ बहुत देर तक युद्ध करता रहा।
⚜️ कल्ला जी के दो सिर और चार हाथ यह रूप राजस्थानी लोगो में अति लोकप्रिय हैं। आज भी लोकदेवता के रूप में उनको इसी रूप में पूजा जाता हैं इनका देवस्थान चित्तौड़गढ़ में भैंरोपाल पर उनकी छतरी बनी है।

हमारा सत सत नमन है ऐसे वीरों को।
Swiftrun.Blogspot.Com
 🙏

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ